राई बुंदेलखंड का प्रसिद्ध नृत्य यह नृत्य बारह महीना नाचा जाता है इसमें कई बडेनियाँ एकत्र होकर नाच नृत्य करती हैं नर्तकी के साथ मृदंग वादक भी नृत्य करता है बेड़नी की प्रमुख पोशाक चूड़ीदार पजामा के ऊपर घाघरा कंचुक ब्लाउज और ऊपर से ओढनी होती है पैरों में घुंघरू होते हैं वाद्य यंत्र बजाने वाले भी बुंदेली वेशभूषा में रहते हैं अर्थात परदनिया, कुरता, जैकेट और सिर पर स्वाफा गले में तोलिया रहती है
नगरिया और ढोलक का तालमेल ही नर्तकी को नित्य के लिए प्रेरित करता है राई नृत्य फागो तथा कहरवा लोकगीतों की गायन पर सर्वाधिक किया जाता है ईसुरी की फागें अब इनका पर्याय बन गई हैं गायन की रसकिता जब नृत्य से झड़ने लगती है तो राई को देखने सुनने वाले इतने भाव विभोर हो जाते हैं कि भावुक मन वाले तो आप से बाहर दिखने लगते हैं राई में ही कहरवा की लटक दार गायन नर्तकी के रसिक सुंदर में अनोखी वृद्धि कर देती है