बुंदेलखंड की झांकी

 

बुंदेलखंड की झांकी – बुन्देली उत्सव बसारी

बुंदेली और बसंत मानो मिश्री और मधु |जी हां , बुंदेलखंड बुंदेलखंड में बसंत ऐसा ही है जैसे किसी ने शहद में मिश्री घोल दी हो बुंदेलखंड वैसे ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है नदी – नाले , पहाड़ – घाटी,  वन – खेत , झरना – प्रपात , लता – पेड़ – झाड़ी और सोंधी – सोंधी माटी जिस पर लोग द्वारा बनाए पहाड़ टोरियो  मैं मंदिर – मडिया बावड़ी – तालाब , झील – बांध,  बंधान और हरियालियों के बीच गांव। || गांव में मिट्टी के बने घर , घरों के लाल – काले खपरैल और गांव के बीच चौपाल कई मंदिर ,दिवाला, अटाले अथाई और इन मंदिरों में होती पूजा बचते घंटे घड़ियाल त्योहारों और उमंग और उत्सव सामूहिक नृत्य गायन और अनेक परंपरागत सामूहिक उत्सव भरे आयोजन यही नहीं बुंदेलखंड का हर घर यहां की अनोखी संस्कृति का केंद्र है जहां आए दिन किसी न किसी त्योहार की गूंज रहती है पकवान बनते हैं भजन कीर्तन और ना जाने क्या-क्या होता है यहां की बात ही अलग है अन्य संस्कारों में भी अनेक बार विवाह जैसी उत्सव देखने को मिलता है यह सब  ही तो इस बुंदेलखंड की संस्कृति है, परंपराएं हैं यहां का जीवन है और फिर हर मौसम के अनुसार उत्सव होते हैं गर्मी के उत्सव परंपरा में अलग, तो शरद ऋतु की छटा अलग परंतु जो बसंत का उत्साह  है वह तो बिल्कुल ही निराला , लेकिन लोग कहते हैं कि अब वह बुंदेलखंड कहां ? बुंदेली के रस पगे समारोह कहां ? वे उत्सव, वे कार्यक्रम आयोजन भी कहां ? आधुनिकता ने, समय के परिवर्तन ने जीवन की आपाधापी में बहुत कुछ डूबता जा रहा है ,खोता जा रहा है मिटता जा रहा है, अतः जरूरत इस बात की महसूस हुई है कि बुंदेली की जीवंतता को को मन मोहिनी संस्कृति की प्रेरणादायक परंपराओं को न केवल जीवित रखा जाबी बरन उसको घर-घर तक जन-जन तक पहुंचाया जावे इसी उद्देश्य को लेकर बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के गांव बसारी में आज से कई वर्ष पूर्व सन 1995 से बुंदेली उत्सव की शुरुआत की गई बुंदेलखंड के ही एक सपूत बुंदेली में रचे – बसे ,पले – बढे शंकर प्रताप सिंह बुंदेला द्वारा जिन्हें बुंदेलखंड की परंपरा अनुसार स्नेहिल और प्यार भरे नाम मुन्ना राजा के रूप में लोग  जानते हैं ने यह बीड़ा उठाया था और अब तक कई  सफलतम बुंदेली उत्सव का आयोजन ग्राम बसारी में हो चुका है तथा यह महोत्सव हर वर्ष होता है बुंदेली उत्सव , बुंदेलखंड के हर पक्ष को समेटने का एक प्रयास है इसमें जहां संस्कृतिक गतिविधियां , लोकगीत गीत , नृत्य , गायन , वादन आदि प्रदर्शित किए जाते हैं वही बुंदेलखंड में खेलों का बड़ा ही मनोरंजक , रोमांचक एवं उत्सव भरा आयोजन होता है इस तरह इस आयोजन के दो पहलू बनाए गए एक को महाराजा छत्रसाल स्मारक टूर्नामेंट का नाम दिया गया जिसमें बुंदेलखंड के भूले बिसरे खेलों के साथ-साथ प्रचलित एवं लोकप्रिय खेलों को भी शामिल किया गया

और दूसरे को बुंदेली उत्सव खा गया  जिसमे  सांस्कृतिक कार्यक्रमों का , बुंदेली लोक परम्पराओ एवं विधाओं के विविध आयोजन प्रतियोगिता के रूप में होते हैं बुंदेली उत्सव इन्हीं दो पक्षों को समेट का सफलता की ऊंचाइयों को छूकर संपन्न होते हैं 7 दिनों तक लगातार दिन में खेलकूद तथा रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं इस बुंदेली उत्सव में जहां प्रदेश के मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक अलग-अलग तिथियों में शिरकत करते हैं यह आयोजन दलगत भावना से हटकर सभी राजनैतिक दल के नेता बुंदेली उत्सव को और अधिक गति देने के लिए आगे आते हैं और घोषणाएं भी करते हैं यही कारण है कि बसारी गांव को शासन ने पर्यटन ग्राम घोषित किया है इस क्षेत्र में बिखरे पड़े पुरातत्व महत्व की  धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए संग्रहालय की व्यवस्था भी की जा रही है जिसमें बुंदेली विकास संस्थान भी पुरातत्व धरोहर के सर्वेक्षण कार्य में संलग्न है

एक सप्ताह तक चलने वाले बुंदेली उत्सव के दौरान बसारी गांव में 7 दिनों तक इतनी चहल-पहल रहती है जैसे मेला लगा हो दिन में खेलकूद,  रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैंजिसमें नन्हे-मुन्ने से लेकर  बड़े – बूढ़े , पुरुष – महिलाएं सजे धजे स्टेडियम में पहले आकर अपना स्थान सुरक्षित कर लेते हैं 50000 की क्षमता की क्षमता वाला छत्रसाल स्टेडियम दर्शकों से खचाखच भरा रहता है इस अनोखे आयोजन के समय जिला प्रशासन ने भी शासन की नीतियों, योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न विभागों की प्रदर्शनी लगवाई  है

सात दिवसीय बुंदेली उत्सव समारोह में प्रारंभ नई पीढ़ी को बुंदेली संस्कृतिक विरासत के प्रति आकर्षित करने तथा उन्हें उसमें रचने – बसने हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से स्कूली बच्चों के बुंदेली  सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रतियोगिताओं से होता है जिसमें नन्हे – मुन्ने बच्चे गायन – वादन व नृत्य की बुंदेली विधाओं में बढ़-चढ़कर तैयारी कर अपनी प्रस्तुतियां देते हैं इसी के साथ बुंदेलखंड की परंपराओं वेशभूषा ओं को प्रोत्साहित करने हेतु वरिष्ठ व कनिष्ठ वर्ग की बुंदेली पोशाक प्रतियोगिताएं होती है जिसके परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं इसी के साथ बुंदेलखंड के रंगमंच के कलाकारों कीअभिनय क्षमता को रेखांकित करने हेतु बुंदेली नाटक प्रतियोगिता का आयोजन होता है इस प्रतियोगिता नाट्य दल को 30 से 40 मिनट का समय दिया जाता है जिसमें उसे अपनी कथानक को समेटना होता है नाटक की भाषा बुंदेली होती है अभी तक अनेक नाट्य मंडलियों ने भागीदारी करके बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत के प्रस्तुतीकरण के साथ यहां के शोषण ,अशिक्षा , अन्याय व अन्य संस्थाओं को उठाकर जन जागरण करने का प्रयास किया है।

“दीपशिखा मंच” दतिया के मँजे  हुए कलाकारों ने “हरदौल” तथा “सुंदरिया” जैसे नाटक का प्रदर्शन विशेष रूप से किया है इसके अलावा निर्धारित तिथियों को दिवारी, रावला, कछियाई ,चमरयाई बैठक, ढिमरयाई, बधैयानृत्य ,  बरेदी , आल्हा , दलदल घोड़ी , खयाल , कहरवा , सोहरे,  दादरे , बिलवारी , गोटे , गारी , लमटेरा , कार्तिक गीत , फ़ाग , राई आदि जैसी विधाओं की प्रतियोगिताएं संपन्न कराई जाती हैं इसमें बुंदेलखंड की सभी कलाकारों कला मंडलियों से नाम मात्र की पंजीयन शुल्क के साथ एक निश्चित तिथि तक पंजीयन कराया जाता है मंच पर प्रदर्शन के पूर्व स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा उनका प्रारंभिक परीक्षण करने के उपरांत उन्हें मंच पर भेजा जाता है गायक वाली विधाओं की कला साधकों को 5 से 8 मिनट तथा नृत्य वाली विधाओं के कलाकार को 10 से 15 मिनट का समय दिया जाता है कलाकारों की कला को परखने हेतु क्षेत्र की ख्याति नाम तीन विद्वान व्  कला साधकों को निर्णायक के रूप में बिठाया जाता है उनके द्वारा निर्णय को अंतिम माना जाता है बुंदेली विकास संस्थान प्रति विधा में प्रथम व द्वितीय स्थान पर आने वाले दलों व कलाकारों को पुरस्कृत करता है इसके अलावा 25 किमी की अधिक दूरी से आने वाले खिलाड़ियों व कलाकारों को वास्तविककिराया, मुक्त आवास व भोजन व्यवस्था संस्थान द्वारा की जाती है इसी दौरान कुश्ती हेतु दंगल बा बैलगाड़ी दौड़ का आयोजन भी होता है कुश्ती में भाग लेने हेतु ना केवल बुंदेलखंड अंचल बल्कि पंजाब, हरियाणा ,उत्तर प्रदेश आदि स्थानों से पहलवान भाग लेने हेतु आते हैं इसी तरह बैलगाड़ी दौड़ अत्याधिक रोमांचकारी  होती है जिसको देखने हेतु बड़ी संख्या में जनसमूह उमड़ता है बैलगाड़ी दौड़ में भागीदारी हेतु छतरपुर, महोबा, हमीरपुर, सागर, दमोह, पन्ना तथा टीकमगढ़ जिले की किसान अपनी बैल गाड़ियों को जहां सजाने हेतु साल भर तैयार करते हैं वही बैलों को खिला पिलाकर तैयार रखते हैं इस बैलगाड़ी दौड़ को जीतने हेतु अंचल के किसान मैं एक स्पर्धा भावना विकसित हो गई है बैलगाड़ी दौड़ की विजेता को एक बैलगाड़ी तथा नगद राशि दी जाती है ज्ञात हो कि बुंदेली उत्सव में सागर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना ,बांदा ,महोबा, झांसी ,,दतिया उमरिया ,हमीरपुर, छतरपुर तथा जबलपुर जिले की कलाकार व खिलाडी सक्रियता से हिस्सा लेते है

बुंदेली उत्सव के दौरान ही बुंदेलखंड के सांस्कृतिक साधकों इतिहासकारों में विद्वानों की सेवाओं को रेखांकित करने के उद्देश्य से इनका सम्मान किया जाता है इतिहास के चित्र में महत्वपूर्ण काम करने वाले इतिहासकारों को बुंदेलखंड के प्रसिद्ध इतिहासकारो स्वर्गीय दीवान प्रतिपाल सिंह के नाम से सम्मान दिया जाता है यह सम्मान श्री महेंद्र प्रताप सिंह , नई दिल्ली को दिया गया जिन्होंने छत्रसाल प्रमाणावली का संपादन किया है बे अस्वस्थता के कारण बसारी नहीं आ सके जिससे संस्थान के संरक्षक  श्री शंकर प्रताप सिंह बुंदेला ने नई दिल्ली में उनके निवास पर जाकर उन्हें सम्मान पत्र व  राशि प्रदान की इसी तरह, सांस्कृतिक व  भाषा के क्षेत्र में से सृजन रत विभूतियों को स्वर्गीय राव बहादुर सिंह बुंदेली बसारी सम्मान दिया जाता है यह सम्मान 2001 में बुंदेली के वरिष्ठ कवि श्री माधव शुक्ल मनोज सागर को रचनात्मक योगदान हेतु डॉक्टर नर्मदा प्रसाद गुप्त छतरपुर एवं इतिहास में शोध परक कार्य करने हेतु श्री जयेंद्र सिंह परमार बुड़रक को पदत्त किया गया वर्ष 2002 का यह सम्मान बुंदेली के वरिष्ठ कवि विध्यकोकिल पं श्री भैयालाल व्यास छतरपुर रचनात्मक हेतु , अयोध्या प्रसाद गुप्त को समीक्षा एवं सांस्कृतिक हेतु कुमुद उरई को समीक्षा एवं संस्कृति हेतु ,चौमासा के संपादक डॉ कपिल तिवारी भोपाल को इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हेतु श्री लक्ष्मण सिंह गौर के प्रदत्त किया गया वर्ष 2003 का सम्मान भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने वाले डॉक्टर कैलाश बिहारी द्विवेदी टीकमगढ़ को साहित्य के क्षेत्र में,  डॉ. कन्हैयालाल शर्मा  “कलश” गुरसराय को एवं आलोचना के क्षेत्र में , “ईसुरी” के पूर्व संपादक डॉ कांति कुमार जैन “सागर ” को प्रदत्त किया गया

बुंदेली उत्सव के दौरान अभी तक झांसी की श्रीमती मधु श्रीवास्तव , कुंडेश्वर के पंडित गुण सागर सत्यार्थी,  तथा छतरपुर के  श्री नीरज सोनी के लोक चित्रों व कार्टूनों आदि की प्रदर्शनी के साथ बुंदेलखंड की मूर्ति कला की कला साधक बालचंद कुमार धमना की कलाकृतियों की प्रदर्शनिया लगाई गई इसी उत्सव के साथ राष्ट्रीय बाल साहित्य केंद्र नई दिल्ली के सहयोग से बच्चों में कहानी लेखन, चित्रांकन, कविता लेखन तथा पुस्तक समीक्षा लेखन हेतु महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन पंकज चतुर्वेदी सहयोग में किया गया

बुंदेली उत्सव के दौरान बुंदेली व्यंजन प्रतियोगिता का भी महत्वपूर्ण आयोजन होता है जिसमें विलुप्त हो रहे बुंदेली व्यंजनों से लेकर आज की लोकप्रिय बुंदेली व्यंजनों का प्रदर्शन किया जाता है इसमें खजुराहो की फाइव स्टार होटलों से लेकर ग्रामीण महिलाएं तक बढ़-चढ़कर भागीदारी करती है तथा क्षेत्र के आम जनमानस के साथ विशिष्ट व्यक्ति भी इसका स्वाद चखकर अभिभूत होते हैं

विगत वर्ष मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद के सहयोग से गणगौर, ढिडिया व राजस्थानी लोक नृत्य कालवेलिया की महत्वपूर्ण प्रस्तुतियां दी गई इसी तरह उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के जनजाति एवं लोक कला संस्कृति संस्थान लखनऊ के सहयोग से दिवारी पाई डंडा, कछियारी ,राई एवं शैरा तथा ब्रिज का प्रसिद्ध लोक नृत्य चरकुला प्रस्तुत किया गया बुंदेली विकास संस्थान  मध्य प्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद ने यह प्रस्तुतियां इस मनसा से दी जिससे बुंदेलखंड के कलाकार अंचल से बाहर की कला साधना को देख परख सकें इस अवसर पर बुंदेली साहित्य की बुक स्टाल भी लगाई जाती हैं जिससे लोग अपने क्षेत्र के रचनाकारों की रचनाओं को खरीदकर पढ़ते हैं

बुंदेली विकास संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष एक पत्रिका बुंदेली बसंत का प्रकाशन आलेख लेखक के संपादन में डॉक्टर के एल पटेल तथा डॉक्टर हरिसिंह घोष के सहयोग से किया जाता है जिसमें महत्वपूर्ण शोधत्मक आलेखों के अतिरिक्त बुंदेली की रचना शीलता को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया जाता है बुंदेली विकास संस्थान इसके अलावा अन्य साहित्य पुस्तकों का प्रकाशन भी कर रहा है तथा बुंदेली रचनाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर साहित्य प्रकाशन में सहयोग कर रहा है

बुंदेली उत्सव के दौरान मध्य प्रदेश व  उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण राजनेताओं के साथ साहित्यकारसंस्कृतिकर्मी इस आयोजन में पधारकर उत्सव को सफल बनाते हैं यह आयोजन आज बुंदेलखंड का महत्वपूर्ण उत्सव बन गया है जिसमें संपूर्ण अंचल की झांकी देखी जा सकती है इस को सफल बनाने हेतु अंचल के अनेक कार्यकर्ता व पदाधिकारी दिन-रात परिश्रम करते हैं.

बुंदेलखंड की झांकी – बुन्देली उत्सव बसारी,  का यह लेख डॉ बहादुर सिंह परमार द्वारा लिखित है