बुंदेलखंड में कार्तिक मास में दिवाली के अवसर पर दिवारी गायन एवं दिवारी नृत्य का आयोजन किया जाता है बुंदेली के दीवारी गीत लोक जीवन की जीती जागती तस्वीरें जिसमें आदर्श के स्थान पर यथार्थ को वाणी दी जाती है जीवन की वास्तविकता का चित्रण इन गीतों में मिलता है वैसे अन्य देखने को नहीं मिलता है
इन गीतों में विविध रसों का सामान मिलता है श्री कृष्ण भक्ति, दधिदान , गोवर्धन लीलाओं का आख्यान रहता है इन गीतों का सर्वप्रथम विशेषता है कि इनकी सच्चाई दिवारी गीत एवं नृत्य का संरक्षण अहीर जाति के लोगों द्वारा हुआ है दिवाली तारसप्तक और विल्मबित लय में गाई जाती है
तथा ढोलक , नगड़िया , झांझ ,रमतूला जैसे वाद्य यंत्र गीत की पंक्ति के बाद बजाए जाते हैं पंक्तियों के प्रारंभ एवं बीच में अरे और ओ तथा अंत में रे का प्रयोग टेर को तारत्व प्रदान करता है यह गीत विशेष मुद्रा में भाव भंगिमा के साथ बाद संगीत लोक नृत्य पर गाए जाते हैं
दिवाली के दूसरे दिन प्रात काल से ही गांव के ग्वाले, अहीर, गड़रिया, आदि पशु पालक पालक अपनी पारंपरिक पोशाक नृत्य के लिए निकलते हैं दीवारी नृत्य में गायक वादक एवं नर्तक तीन दल होते हैं