बुंदेलखंड में ढीमरो के गीत विशेष महत्व रखते हैं क्योंकि उनके गायन या ताल स्वर अत्यधिक कर्ण प्रिय होते हैं ढीमर जाति के द्वारा गाए जाने वाले भजन एवं गरियाँ विशेष प्रचलित हैं इन्हें लोटे को लोहे की छड़ों से पीटकर निकलने वाली ध्वनि ध्वनि पर गया जाता है सजनई , बिरहा , कहरवा , इन गीतों के ही प्रकार हैं
यद्यपि ढिमरयाई पुरुष प्रधान होती है किंतु उनके घरों की महिलाओं की भागीदारी देखी जाती है उसके लोक बाधो में सारंगी, खंजड़ी, कांसे की गड़ई ,लोहे का त्रिताला (लोहे की छड़ से बुना हुआ त्रिभुजाकार एक यंत्र है )आदि प्रमुख होते हैं वाद्य यंत्रों बजाते हुए उनके हावभाव को साथ शारीरिक मनोरंजक हरकतें भी मोहक होती हैं
इन गीतों में भजन लोकगीत एवं लोक गारियों की प्रधानता रहती है इस जाति के कवियों की रचना में उनके दैनिक जीवन का प्रभाव भी लक्षित होता है श्रृंगार रस की प्रधानता होने पर भी इन भक्ति पर भजनों को स्थान देने में परहेज नहीं करते हैं ढिमरयाई गीत और नृत्य दोनों ही मनमोहक होते हैं