गारी गायन की परंपरा अति प्राचीन है विवाह के अवसर पर गारी गायन का प्रचलन है गारी गीतों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें प्रेम की प्रधानता रहती है यही कारण है कि गारी देने वाले और सुनने वाले दोनों को गारियाँ अच्छी लगती हैं
बुंदेलखंड में विवाह के अवसर पर जब बारात मंडप के नीचे भोजन के लिए आती है और बार औरतें मोर्चाबंदी कर गारियाँ गाने बैठ जाती है
ये गारी गीत हास परिहास युक्त व्यंगात्मक होते हैं लोकजीवन की सजीव झांकी भी इन गारी गीतों में मिलती है
लोक संस्कृति के विभिन्न अंग इन गारी गीतों में “हाँ जू” , “मोरे लाल “, “हाँ हाँ रे “, “हूँ हूँ रे “ आदि का प्रयोग आदि का प्रयोग आदि और अंत में किया जाता है