बुंदेली ख्याल

भारत में हिंदू और इस्लामी संस्कृति के मिश्रण के फल स्वरुप ख्याल का जन्म हुआ कहीं कहीं इसे लावणी भी कहा जाता है ख्याल लोक भाषा का परंपरा का शब्द है जिसका प्रचलन लोकनाट्य के एक प्रकार और गीत की एक शैली के अर्थ में हैं

ख्याल की अपनी कुछ विशेष तर्जे व धुनें होती हैं जिनमें अत्यधिक बारिक होती है जिस जैसे अधर ककेरा , दो अंग , चौ अंग , छः अंग ,आठ अंग , बेमात्रा , देनुकत , नुक़्तेजी आदि ख्याल के फड़ लगते हैं इस दायरे या चंग नामक वाद्य यंत्र पर गाया जाता है

जब चंग एक साथ बजते हैं तो एक समा – सा बंध जाता है रंगतो का गाना ख्याल गायको निर्भर करता है ख्याल के कई प्रकार के होते हैं जो हिंदी और उर्दू भाषाओं में लिखे जाते हैं इनकी प्रतियोगिताओं में दोनों प्रकार के ख्यालों का गायन होता है बुंदेलखंड में ख्याल की पारंपरिक पर अति प्राचीन है यह रियासतों में ख्यालकारों एवं ख्यालबाजो को विशेष आश्रय प्राप्त था इस तरह ख्याल  व् लावणी  बुंदेली लोक साहित्य की अभिव्यंजना शैलियों में प्रविष्ट स्थान रखती है